Monday, 15 December 2014

नई शिक्षा नीति लाने का प्रस्ताव


20 साल पहले की शिक्षा नीति की जगह नई व्यापक नीति की तैयारी

वर्तमान चुनौतियों का सामना करने के लिए मौजूदा शिक्षा नीति पुरानी


* आनन्द एम. वासु *

 

 


जैसलमेर /  शिक्षा के क्षेत्र में जैसलमेर बहुत ही पिछड़ा हुआ क्षेत्र है । जिसका बहुत बड़ा कारण राजनीति के क्षेत्र में भी इस जिले का पिछड़ापन है । जैसलमेर के इतिहास में यहां से कोई मंत्री नहीं बना । अक्सर विधायक की पार्टी के विपरित ही राज्य में सरकारें रहीं । लेेकिन संयोग से अबकी बार, कड़ी से कड़ी जुड़ते हुए, स्वर्ण नगरी से लेकर दिल्ली में केन्द्र तक विधायक दल का शासन है । इस लिहाज से भविष्य में उम्मीदें बनती ही हैं ।

शिक्षा के क्षेत्र में इस जिले से सीधे तौर पर कोई भारतीय प्रशासनिक सेवा में नहीं है और न ही कोई आईपीएस । जैसलमेर जिले से 5 प्रतिशत डाक्टर कहना ज्यादा होगा ।  हां, विगत कुछ वर्षों में राजस्थान प्रशासनिक सेवाओं में जरूर जैसलमेर जिले से कुछ प्रतियोगियों का चयन हुआ है । सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का बेहाल है, वहां पर पढ़ाई कम सरकार की अन्य योजनाओं में शिक्षकगण संलग्न रहते हैं । छात्रों में इतनी ललक कहां जो सेल्फ स्टडी करे । हालांकि यह ललक पैदा करने के लिए अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजते हैं । यह कला या जादू शिक्षा के मन्दिर में ही चलता है । इसलिए पढ़ाई के साथ बच्चों में जिज्ञासा पैदा करना भी शिक्षण व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्टेप है । जिज्ञासा केवल पढ़ाई में ही नहीं वरन्, अन्य जीवनोपयोगी कलाओं, जानकारी आदि में हो सकती है । अब तो कम्पयूटर का युग है , तो शिक्षा के विस्तार की संभावनाएं बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं । शिक्षा देवे उतनी ही कम है । शिक्षा अनन्त है ।

सहशैक्षिक गतिविधियों में भी जैसलमेर पिछड़ा क्षेत्र रहा है । कलात्मक और सृजनात्मक शिक्षा तो जैसलमेर के लिए मृगमरीचिका ही साबित हुई है । जैसलमेर में पर्यटकों की अच्छी आवक से जहां देश को विदेशी मुद्रा की आय होती है, तो जैसलमेर में पर्यटन से रोजगार मिला है । लेकिन यदि कलात्मक और सृजनात्मक शिक्षा विकसित होती है इस क्षेत्र में भी टेलेन्ट की कमी नहीं है । नृत्य, संगीत कई ऐसे क्षेत्र और विषय हैं जिनसे प्रतिभाएं तलाशी जा सकती है । 'इन्डिया'ज गोट टेलेन्ट' ने जैसलमेर के नृतक 'क्वीन' हरीश के विश्वविख्यात बना दिया । जैसलमेर में छोटे—छोटे बच्चों को विदेशी भाषा का ज्ञान है । वे फर्राटे से अंग्रेजी सहित, फ्रैंच, स्पेनिश, जर्मनी, इटालियन, जापानी, कोरियन आदि भाषाएं बोलते हैं और गाइड बन रोजगार में संलग्न है ।

गुरूदेव टैगोर के अनुसार शिक्षा का उच्चतम लक्ष्य है मानव की सम्पूर्ण प्रवृतियों का विकास ताकि जीवन पूर्णता की ओर बढ़ सके । लेकिन इसके लिए हमारी शिक्षा व्यवस्था में ऐसा मधुकलश नहीं है जिससे कि कोई प्यासा नहीं रहे । इसीलिए सरकार ने भारतीय शिक्षण संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता, अनुसंधान और नवाचार की कमी से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए एक नई शिक्षा नीति लाने का प्रस्ताव किया है। विशेषज्ञों ने वर्तमान नीति को आधुनिक परेशानियों से निपटने के लिहाज से पुराना और विफल बताते हुए कहा कि नई नीति शिक्षा के क्षेत्र में एक नई स्पष्ट रूपरेखा बनाएगी ताकि देश एक शिक्षित समाज के रूप में विकसित हो सके।

पिछली नीति के बाद से देश के समक्ष चुनौतियां बदल गई हैं। शिक्षा में असमानताएं बढ़ गई हैं, और मौजूदा दौर में 60 लाख बच्चे स्कूलों से बाहर बने हुए हैं। हजारों बच्चों को स्कूलों के बाहर देखा जा सकता है। इसलिए एक व्यापक शिक्षा नीति की जरूरत है, जो स्कूल पूर्व शिक्षा से लेकर उच्च स्तरीय शिक्षा तक का समाधान उपलब्ध कराती हो।

विशेषज्ञों ने कहा कि भारत को एक ज्ञानवान समाज के रूप में विकसित करने के लिए यहां की शिक्षा नीति समावेशी होनी चाहिए। इसमें स्कूल पूर्व शिक्षा से लेकर उच्च स्तरीय शिक्षा तक का समाधान होना चाहिए और साथ ही प्रारंभिक स्तर पर बुनियादी कौशल पर जोर देना होगा। गैर सरकारी संगठन राइट टू एजुकेशन फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अंबरीश राय ने कहा कि पिछली शिक्षा नीति 20 साल पहले तैयार की गई थी, अब समय आ गया है कि नई व्यापक नीति तैयार की जाए।

शिक्षार्थी जीवन में कलात्मक एवं सृजनात्मक शक्ति का विकास करने हेतु 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति 86' के अन्तर्गत कला शिक्षा विषय अनिवार्य विषय के रूप में कक्षा 9 व 10 में 1987—88 में लागू किया गया था । लेकिन किसी स्पष्ट नीति के अभाव में उपेक्षा का शिकार हो गई वह नीति । अब फिर, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 (1992 में संशोधित) में शिक्षा प्रणाली के क्रांतिकारी पुनर्निर्माण की जरूरतों पर बल दिया गया, ताकि सभी स्तरों पर इसकी गुणवत्ता में सुधार आ सके और विज्ञान और तकनीकी पर विशेष ध्यान दिया जा सके। नैतिक मूल्यों के संवर्धन, शिक्षा और लोगों की जिंदगी के बीच घनिष्ठ संबंध है।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी ने हाल ही में एक सम्मेलन में मंत्रालय की पहल के बारे में बताते हुए इस मुद्दे को उठाया था। उन्होंने कहा था, "भारत को अब एक नई शिक्षा नीति की जरूरत है जिसमें शिक्षण-कौशल पर चर्चा हो। साथ ही यह भी शामिल हो कि किस कोर्स को किस तरह पढ़ाया जाना है।" उन्होंने कहा था, "हम कोशिश कर रहे हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर यह विवेचना पूरे देश में जनवरी 2015 से शुरू कर दी जाए, और इसमें सभी हितधारकों का मत जाना जाए कि वे किस कोर्स को किस रूप में चाहते हैं।" रूम टू रीड (भारत) में साक्षरता निदेशक के पद पर काम करने वाले सौरव बनर्जी भी इस बात से सहमत हैं कि वर्तमान चुनौतियों का सामना करने के लिए मौजूदा शिक्षा नीति पुरानी पड़ गई है।

गैर सरकारी संगठन 'प्रथम' की स्वायत्त अनुसंधान और मूल्यांकन इकाई एएसईआर (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) की निदेशक रुक्मिणी बनर्जी का कहना है कि सीखने के लक्ष्यों को इस तरह स्पष्ट रूप से समझाने की जरूरत है, ताकि अभिभावकों, अध्यापकों और समूचा देश उसे आसानी से समझ सके।

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