ईलाज में लापरवाही , सामान्य प्रसव को बताया सिजेरियन
एम्बुलेन्स से 300 किलोमीटर का सफर तय कर जोधुपर में कराया सामान्य प्रसव
आॅपरेशन की भी व्यवस्था नहीं, बेहोश करने वाला डॉक्टर छुट्टि पर जाए तो नहीं है वैकल्पिक व्यवस्था
* आनन्द एम.वासु *
जैसलमेर / विगत लम्बे समय से स्थानीय , सरकारी जवाहिर चिकित्सालय में आने वाली गर्भवती महिलाओं के ईलाज में बरती जा रही लापरवाही व ड्यूटी चिकित्सकों की हठधर्मिता को लेकर सोशल मीडिया के जरिये उठी आवाज जन आंदोलन में तब्दील हो गई है । सरकारी महिला प्रसूति डॉक्टरों के खिलाफ यह आंदोलन आज सोमवार को नवयुवकों द्वारा शुरू किया गया है । जिसमे सैकड़ो स्थानीय युवाओ ने भाग लिया। जिले भर से महिलाओं और बुजुर्गों के साथ ने उनका मनोबल बढाया । इससे पहले आशीष व्यास ने आप बीती व्यथा सोशियल मीडिया में बताई । बात की गंभीरता को देखते ही देखते यह व्यथा व्यक्ति विशेष की न हो कर आमजन की हो गई । सोशियल मीडिया, "वाह्ट्सअप" और "फेसबुक" से उठी चिंगारी ने जन आन्दोलन का रूप ले लिया ।
सोमवार को सुबह स्थानीय सत्यदेव व्यास पार्क में इकठ्ठा हुए इन युवाओं ने काली पट्टी बांध व अपने मुंह को बंद रखते हुए शहर के मुख्य मार्गो से होते हुए जिला कलक्टर कार्यालय पहुंचे जहां पर एक प्रतिनिधि मंड़ल ने मिलकर जिला कलक्टर एनएल मीना को इस बाबत ज्ञापन सौंपा तथा ऐसे चिकित्सकों के खिलाफ जल्द कार्यवाही करने के साथ ही जवाहिर चिकित्सालय में चिकित्सकों की नियुक्ति की मांग की।
इस दौरान जिला कलक्टर मीना ने उन युवाओं को आश्वासन दिया कि इस समस्या को लेकर पीएमओ से बात की जायेगी तथा ऐसी संवेदनहीनता नहीं हो तथा आने वाले मरीजों से चिकित्सकों के द्वारा सहानुभूति पूर्वक व्यवहार हो, इसके लिये उन्हे चिकित्सकों को पाबंद करने के लिये कहां जायेगा। चिकित्सकों की नियुक्ति को लेकर आ रही परेशानी को स्वीकार करते हुए जिला कलक्टर ने कहां कि मेरे द्वारा हर महीने इसकी स्थिति से उच्चाधिकारियों के साथ बात व पत्र व्यवहार होता है तथा वस्तुस्थिति बताई जाती रही है लेकिन अंतिम निर्णय उच्चाधिकारियों को ही लेना है।
अस्पताल में इलाज में कोताही बरतने को लेकर इस आन्दोलन के संयोजक आशीष व्यास ने इसकी शिकायत अस्पताल प्रशासन से करते हुए जिलाधिकारी से भी शिकायत की। आशीष व्यास ने बताया कि दो दिन पहले प्रेगनेंट महिला को देर रात सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल प्रशासन की ओर से उसकी कोई सुधि नहीं ली गयी थी। महिला प्रसव पीड़ा के चलते बार-बार चिल्लाती रही लेकिन न तो किसी चिकित्सक ने उसकी सुध ली और न ही उसे लेटने के लिए बैड दिया गया। कई बार हाथ जोड़कर सामान्य अस्पताल की महिला चिकित्सक व अन्य चिकित्सकों ने उपचार की गुहार लगाई लेकिन किसी भी चिकित्सक को महिला की चीखें सुनाई नहीं दी। जब इलाज कराने का दबाव दिया गया तो प्रकरण सीजेरियन बताकर अर्जेंट ऑपरेशन करने का कहा गया । लेकिन परिजनों ने ऑपरेशन की हाँ भरी तो, बेहोश करने वाला डॉक्टर नहीं होने का बहाना बनाया । बाद में चिकित्सकों ने उसकी बिना जांच किए जोधपुर रैफर कर दिया। अंत में उस प्रेगनेंट महिला को जोधपुर ले जाया गया जहां सामान्य प्रसव से बच्चे का जन्म हुआ ।
चिकित्सा विभाग के डॉक्टरों की लापरवाही, उनका मरीज और उनके परिजनों के साथ दुर्व्यवहार तथा अस्पताल प्रशासन व जिला प्रशासन की उदासीनता से तंग आकर जैसलमेर की जनता में सोशियल मीडिया ने जन आंदोलन को जन्म दिया । इस आंदोलन के संयोजक आशीष व्यास के नेतृत्व में आज सोमवार को सुबह 10.30 बजे गड़ीसर चौरोह पर स्थित सत्यदेव पार्क से, करीब 600 लोगों के समूह ने, मौन जुलूस निकाला । इसी समूह ने इसे जन आंदोलन का रूप देने की योजना बनाई है । इसी बैनर तले आज यह मौन जुुलूस निकाल कर अस्पताल प्रशासन और जिला प्रशासन को आगाह किया है । जिला कलक्टर ने 7 दिन का समय दिया है ।
सोशल मीडिया से उठी आवाज
आम तौर पर टाईम पास के लिये माने जाने वाले साधन सोशल मीड़िया के जरिये जन आंदोलन की आवाज मुखर हुई। एक व्यक्ति के द्वारा अपनी बहन के प्रसव पीड़ा के हालात दो दिन पहले फेसबुक पर जैसे ही अपलोड़ किये मानो जनता के लम्बे समय से दबे जज्बात स्वयं ही बाहर आ गये फिर क्या था सोशल मीडिया के जरिये अपने-अपने ग्रुप्स में इसके विरोध को लेकर युवाओं के दल इकत्रित हुए ओर रविवार को बाजार में सम्पर्क कर पेम्पलेट बांटे तथा समर्थन के लिये सुबह आने का निवेदन किया जिसके चलते सुबह सत्यदेव में सैकड़ो युवा एकत्रित हुए।
कलेक्टर के अर्द्धशासकीय पत्रों पर भी ध्यान नहीं
जिला कलक्टर मीना ने आंदोलित युवाओं को बताया कि हर माह अर्द्धशासकीय पत्रो के माध्यम से उच्चाधिकारियों को चिकित्सा व्यवस्था से अवगत करवाने के साथ ही चिकित्सकों की कमी के बारे में मेरे द्वारा बताया जाता है। अगर ऐसा है तो फिर उन पर कार्यवाही न होना सोच से बाहर की बात है कि जिले के आलाधिकारी जो इसके लिये जवाब देह है उसकी बात को भी तवज्जों नहीं मिल रही है तो ऐसे सुशासन की परिकल्पना कैसे कोई कर सकता है। अगर जिलें के आलाधिकारी के पत्रों व उनके द्वारा बताये आईने पर भी अगर काम नहीं किया जाता तो सुशासन की दुहाई मात्र औपचारिकता है ।
पार्टियों ने काटी कन्नी
आम तौर पर जनता के हितों की दुहाई देने वाले जनप्रतिनिधियों के साथ ही पक्ष व विपक्षी पार्टियों के पदाधिकारी भी इस पूरे मामले में अपने आप को बचाते रहे। जहां अपने ही राज में जन आंदोलन के द्वारा प्रशासन का विरोध भाजपा को खल रहा था वहीं उन आंदोलित युवाओं का किसी राजनैतिक दल के हस्तक्षेप न हो इसके लिये कांग्रेस से उनके द्वारा किनारा रखा गया। इसलिये जो कांग्रेसी इसमें शामिल थे वह गैर राजनैतिक संगठनों के पदाधिकारी थे ।
राजनैतिक ताकत कम है जैसाणे में इसलिये उपेक्षित
राजनीति लोकतंत्र में हावी है जितना शक्तिशाली जनाधार उतनी बुलंद आवाज ये कायदा रहा है । लेकिन जैसलमेर की आवाज विधानसभा में पहुंचाने वाले जनप्रतिनिधियों की पहली विडम्बना तो यह रही कि यहां से कभी सत्ताधारी दल का प्रतिनिधि पहुंचा नहीं लेकिन इस बार जब यह मिथ्या टूटी तो इस भरे राज में उनकी सुनने वाला कोई नहीं अकेले प्रतिनिधि के तौर पर विधायक छोटूसिंह के द्वारा दावे तो बहुत किये लेकिन एक साल की सरकार जहां उपलब्धि गिनावा रही है । वहां विधायक के पास एक डाॅक्टर लाने के साथ ही जो व्यवस्थाएं है उन्हे भी सुचारू करने के लिये मानव शक्ति नहीं है।
राजनीति लोकतंत्र में हावी है जितना शक्तिशाली जनाधार उतनी बुलंद आवाज ये कायदा रहा है । लेकिन जैसलमेर की आवाज विधानसभा में पहुंचाने वाले जनप्रतिनिधियों की पहली विडम्बना तो यह रही कि यहां से कभी सत्ताधारी दल का प्रतिनिधि पहुंचा नहीं लेकिन इस बार जब यह मिथ्या टूटी तो इस भरे राज में उनकी सुनने वाला कोई नहीं अकेले प्रतिनिधि के तौर पर विधायक छोटूसिंह के द्वारा दावे तो बहुत किये लेकिन एक साल की सरकार जहां उपलब्धि गिनावा रही है । वहां विधायक के पास एक डाॅक्टर लाने के साथ ही जो व्यवस्थाएं है उन्हे भी सुचारू करने के लिये मानव शक्ति नहीं है।
जनआंदोलन से जुडे युवाओं का कहना था कि अगर इस प्रकार का रवैया रहा ओर सही हल नहीं निकला तो आने वाले दिनों में जैसलमेर बंद का आह्वान व उग्र प्रदर्शन किया जायेगा।
यह है घटना
जानकारी अनुसार राजकीय जवाहर चिकित्सालय के डॉक्टर सांखला के पास एक महिला का ईलाज विगत सात माह से चल रहा था । महिला प्रेगनेन्ट थी । महिला की तबीयत बिगड़ने पर उसे स्थानीय राजकीय जवाहिर चिकित्सालय में ले जाया गया । देर रात्रि के समय डॉ0 दुग्गड़ की ड्यूटि थी । चूंकि प्रेगनेन्ट महिला का ईलाज डॉ0 सांखडा द्वारा किया जा रहा था तो डॉ0 दुग्गड़ ने फाईल देखकर तत्काल कह दिया कि, 'यह केस डॉ0 सांखला का है इसलिये उन्हें ही चैक करवावो ।' जबकि एक डॉक्टर का उस समय कर्तव्य था, दर्द से कराहती महिला को तत्काल ईलाज की सुविधा मुहैया करवाना था । पीड़िता के परिजनो ने जब डॉ0 सांखला से बात की तो जनाब का जवाब भी मानवता के नाते किसी दरिन्दगे से कम नहीं लगा । डॉ0 का जवाब था, ' मैं छुट्टि पर हॅूं । अभी जिसकी ड्यूटी है उसे ही चैक करवावो ।' परिजन कैसे चैक करवावे । ड्यूटी पर डॉ0 ने तो अपना केस नहीं है कहकर पल्ला झाड़ दिया लेकिन दर्द से कराहती, प्रेगनेन्ट महिला को ईलाज नहीं मिला ।
परिजनों द्वारा हाथ जोड़कर मिन्नतें करने , पर डॉ0 दुग्गड ने मरीज पर अहसान करते हुए , उसे देखने की मात्र ओपचारिकता की और बताया कि, यदि जल्द आपरेशन नहीं किया तो बच्चे को खतरा भी हो सकता है ।
लेकिन ताज्जुब ! यहां भी पोल । दर्द से कराहती प्रेगनेन्ट महिला के परिजनों ने भी स्थिति को देखते हुए तत्काल आॅपरेशन की हामी भी भ्रर दी लेकिन, फिर भी पीड़ित महिला और उनके परिजनों को राहत नहीं मिला बल्कि जिले के एक मात्र सरकारी अस्पताल की अगली कमी जब डॉक्टर ने बताई तो, परिजनों के होश उड़ गए ।
डॉ0 ने बताया कि इनका तो यहां आॅपरेशन भी नहीं हो सकता । क्योंकि बेहोश करने वाला डॉक्टर भी अभी यहां पर नहीं है । वह दस दिन की छुट्टी पर है । यानी दस दिन में कोई भी सिरियस केस आये और उसे बेहोश करके आॅपरेट करना पड़े , तो उनकी गैर मौजूदगी में वो मरीज गया समझो ।
अल्टीमेटली जैसलमेर जिले के सरकारी अस्पताल को राम भरोसे छोड़ पीड़िता के परिजनों ने तत्काल जोधपुर जाने का निर्णय लिया । एम्बुलेस लेकर मरीज को जोधपुर ले गए जहां अगली सुबह ही महिला ने सामान्य प्रसव से बच्चे को जन्म दिया । जच्चा व बच्चा, दोनों स्वस्थ है । जबकि यहां जैसलमेर में खतरा बताते हुए न केवल मरीज के परिजनों को भयभीत किया वरन्, मरीज को मारने की पूरी तरह से तैयार थे ।
अब प्रसव के दौरान सीजेरियन के मामले बढ़ते जा रहे हैं। निजी अस्पतालों में सीजेरियन की मोटी फीस और खर्चे को देखते हुए भी डॉक्टर बिना जरूरत के ही सीजेरियन कर देते हैं। हालांकि इसके पीछे निजी अस्पतालों की अधिक आय अर्जित करने का कारण हो सकता है , लेकिन सरकारी अस्पताल में इसी घटनाएं हो तो चिंता का विषय है ।
बात सामने आई कि बिना जरूरत ही डॉक्टर सीजेरियन कर देते हैं
निजी अस्पतालों में आय अधिक हो, इसके लिए सीजेरियन की जाती है। जैसलमेर की बात करें तो यहां के निजी अस्पतालों में होने वाले प्रसव के 60 प्रतिशत मामलों में सीजेरियन की जाती है। विशेषज्ञ बताते हैं कि गंभीर मामलों में तो सीजेरियन करना जरूरी हो जाता है। उनका मानना है कि आज-कल महिलाओं में प्रसव के दौरान प्रॉब्लम अधिक होती है। कई बार गर्भस्थ शिशु की स्थिति को लेकर तो कई बार अन्य कारणों की वजह से सीजेरियन जरूरी हो जाती है। इसलिए यह कहना कि अस्पताल आय के लिए सीजेरियन पर जोर देते हैं, पूरी तरह सही नहीं हैं।
यह है जैसल वाणी
प्रकरण की जांच करवाई जा रही है । दोषी डॉक्टर व स्टाफ के खिलाफ कार्यवाही होगी ।- जिला कलक्टर
अच्छा है "ऊँघता शहर" का युवा अंगड़ाई लेकर जाग रहा है। सनद रहे, यह मसानिया वैराग्य ना साबित हो। - सम्पादक , मरू महिमा
लेडी डाक्टर ने उक्त महिला की जांच की थी। महिला की सिजेरियन डिलीवरी होनी थी लेकिन सामान्य अस्पताल में सिजेरियन आप्रेशन के लिए कोई चिकित्सक न होने के कारण ही महिला को यहां से रैफर किया गया था। - पीएमओ,जैसलमेर
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