जैसलमेर / नगर
निगम, नगर परिषद, नगर पालिका इनसे सबसे पहले साफ सफाई की अपेक्षा की जाती
है जो कि जनस्वास्थ्य से संबंधित है । जैसलमेर स्वर्ण नगरी के नाम से
विख्यात एक हैरीटेज पर्यटक स्थल भी है लेकिन इस शहर की सफाई व्यवस्था उसके
स्तर की जरा भी नहीं है । इस शहर की जनता ने भाजपा और कांग्रेस दोनों की
शहरी सरकार बनाई लेकिन शहर को एक ‘आदर्श शहर‘ बनाने की कोशिश नहीं की ।
पार्षदों को संतुष्ट करते गए, आंदोलन होने से बचाते रहे, दबाते रहे, लेकिन
इस बार, संभावित तीसरे मोर्चे ने जनता का विश्वास बटोरने की कोशिश तेज कर
दी है । नगरीय शासन में सुधार की गुंजाइश अभी बाकी है ।
शासन में सुधार के लिए भी कई तरह के प्रयोग और आंदोलन चलते रहते हैं, और उनका कुछ न कुछ लाभ-उपयोग होता ही है पर वे प्रयोग परिवर्तन नहीं ला सकते, मात्र हलचल पैदा कर सकते हैं और तुक बैठ जाए तो छुटपुट सुधार भी करा सकते हैं । उससे आगे की उनकी पहुँच नहीं है । अखबारों में लेख, सभाओं में भाषण और प्रस्ताव, हस्ताक्षर आंदोलन, विरोध प्रदर्शन, अनशन, सत्याग्रह जैसे क्रिया कलाप, जनता की ओर से विविध संस्थाओं-संगठनों द्वारा समय-समय पर काम मेें लाए जाते रहते हैं । पर देखा गया है कि उसका प्रभाव स्वल्प ही होता है । सरकार की शक्ति और मषीन इतनी मजबूत होती है कि छुट-पुट आंदोलन उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते और वह किसी बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना ले तो फिर उस विरोध को कम से कम तत्काल को असफल कर सकती है । लाठी, गोली, गिरप्तारी ही नहीं, प्रलोभन, फूट और गुप्तचरी के माध्यम से उन प्रयोगों को बिखेर भी सकती है । दूरगामी परिणाम जो भी हों सरकार के पास इतनी शक्ति तो रहती है कि तत्काल किसी आंदोलन को अस्त-व्यस्त कर दे । इसलिए इस बार शहर में यही चर्चा जोर पकड़ती देखी जा रही है कि, ‘नगरीय शासन में जिस मूल स्त्रोत से विकृतियां उत्पन्न हो रही है यदि उसे गहराई तक न समझा गया और परिवर्तन के केन्द्र बिन्दु की ओर ध्यान न दिया गया तो स्वच्छ और श्रेष्ठ नगरीय शासन जैसलमेर की जनता से दूर जाने की संभावना पूरी रहेगी ।
शासन में सुधार के लिए भी कई तरह के प्रयोग और आंदोलन चलते रहते हैं, और उनका कुछ न कुछ लाभ-उपयोग होता ही है पर वे प्रयोग परिवर्तन नहीं ला सकते, मात्र हलचल पैदा कर सकते हैं और तुक बैठ जाए तो छुटपुट सुधार भी करा सकते हैं । उससे आगे की उनकी पहुँच नहीं है । अखबारों में लेख, सभाओं में भाषण और प्रस्ताव, हस्ताक्षर आंदोलन, विरोध प्रदर्शन, अनशन, सत्याग्रह जैसे क्रिया कलाप, जनता की ओर से विविध संस्थाओं-संगठनों द्वारा समय-समय पर काम मेें लाए जाते रहते हैं । पर देखा गया है कि उसका प्रभाव स्वल्प ही होता है । सरकार की शक्ति और मषीन इतनी मजबूत होती है कि छुट-पुट आंदोलन उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते और वह किसी बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना ले तो फिर उस विरोध को कम से कम तत्काल को असफल कर सकती है । लाठी, गोली, गिरप्तारी ही नहीं, प्रलोभन, फूट और गुप्तचरी के माध्यम से उन प्रयोगों को बिखेर भी सकती है । दूरगामी परिणाम जो भी हों सरकार के पास इतनी शक्ति तो रहती है कि तत्काल किसी आंदोलन को अस्त-व्यस्त कर दे । इसलिए इस बार शहर में यही चर्चा जोर पकड़ती देखी जा रही है कि, ‘नगरीय शासन में जिस मूल स्त्रोत से विकृतियां उत्पन्न हो रही है यदि उसे गहराई तक न समझा गया और परिवर्तन के केन्द्र बिन्दु की ओर ध्यान न दिया गया तो स्वच्छ और श्रेष्ठ नगरीय शासन जैसलमेर की जनता से दूर जाने की संभावना पूरी रहेगी ।
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