Thursday, 20 November 2014

किले को चुनौति !





किले को चुनौति !





जैसलमेर /  इस बार जैसलमेर नगरपरिषद में सभापति की सीट के लिए निकाली गई लॉटरी में सामान्य महिला की पर्ची आने से यह सीट सामान्य महिला की घोषित की गई है । इसलिए सभापति की दौड़ में परिषद क्षेत्र के ब्राह्मण और माहेश्वरी मजबूत दिखाई देते हैं और सक्रिय है । साथ ही सीट पर ओबीसी की ओर से दावेदारी के तैयारियां, भीतर ही भीतर जोरों से हैं ।

जैसलमेर नगरपरिषद में किले का स्थान महत्वपूर्ण है । विश्वविख्यात है । देश विदेश के सैलानी देखने आते है । उत्सव, त्यौंहार के अवसर पर पूरा नगर किले में लक्ष्मीनाथ मंदिर के दर्शन करने उमड़ पड़ता है । इसी किले से विगत नगरपालिका चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता दल्ला भा निर्विरोध चुने गये थे लेकिन भाजपा की ज्यादा सीटें आने के बावजूद, पूरी संभावना बनने के बाद भी वे चैयरमेन की रेस में हार गये । धनबल हावी होने की भी चर्चा चली थी कि 'धनबल के आगे पार्टी का सच्चा, पुराना सिपाही हारा'

इस बार फिर नगरपरिषद में सभापति की सामान्य महिला सीट पर दावेदारी करने के लिए किला सबकी निगाहों में है । किले में घमासान ज्यादा है । किले से जो कि वार्ड नंबर 4 है, भाजपा ने सशक्त उम्मीदवार समता व्यास को टिकट देकर सभापति की दावेदारी के लिए पहला द्वार खोला है । भाजपा के जैसलमेर विधायक छोटूसिंह , भाजपा की वरिष्ठ महिला और पूर्व उप जिला प्रमुख गंगादेवी व्यास सहित कई भाजपा के दिग्गज तथा ब्राह्मण समुदाय भी इस सीट से समता व्यास को जिता कर सभापति बनाने को सक्रिय है ।

वैसे तो सामान्य महिला सभापति की दावेदारी ब्राह्मण और माहेश्वरी वर्ग से ज्यादा मजबूत दिखाई देती है लेकिन सामान्य वर्ग में इस बार ज्यादा घमासान है । ​अन्य आरक्षित वर्ग भी सामान्य सीट पर अपनी दावेदारी कर सकते हैं इस लिहाज से ओबीसी की ओर से भी आगामी सभापति की दावेदारी की जानी तय मानी जा सकती है ।

लेकिन पार्टियो के हित साधन में उनसे खफा लोगों ने अपना तीसरा मोर्चा बना लगभग हर वार्ड में निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं । इनसे भी सामान्य महिला सीट पर ब्राह्मण वर्ग को मौका मिले इसकी संभावना कमजोर होती जा रही है । सामान्य वर्ग में गंगादेवी व्यास, शांति मेहरा, कृष्णा पुरोहित, विमला वैष्णव को पार्षद चुनाव हेतु टिकट न देकर सभापति की दावेदारी से पहले ही दौड़ से बाहर कर दिया ।

गत नगरपालिका अध्यक्ष का पद ओबीसी के लिए आरक्षित हुआ था और वह सीधा चुनाव था जिसमें साबित हो गया था कि निकाय चुनाव में इस वर्ग को कम नहीं आंका जा सकता ।

विश्व विख्यात और विश्व का एकमात्र आवासीय किला अपनी अलग ही पहचान रखता है । इसमें दो जातियों के ही वोट हैं, एक ब्राह्मण और दूसरा रावणा राजपूत । दोनों में अच्छा तालमेल हे । किले ने पहले एक बार एकजुटता दिखाई थी । निर्विरोध निर्वाचन हुआ था । इस बार फिर किला सबकी निगाहों में है । भाजपा की समता व्यास की सभापति के लिए सशक्त दावेदारी जताई जा रही है । लेकिन उससे पहले पार्षद का चुनाव जीतना उनके लिए मुश्किल बनता दिखाई पड़ रहा है । किले में जो घमासान है उसे नियंत्रित करना होगा । वरना् इस बार किला फिर से (गंदी ?) राजनीति के आगे ढह जायेगा । राजनीति के गलियारे में किले को चुनौति है ।

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